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मन

रमा दुलाल २०८० पुष २३ गते २१:४६ मा प्रकाशित

कबिता

मनले नै मनसँग
मितेरी लगाइ दिन्छ,
मनसँग मन साटदा
आनन्दीत पो तुल्याइ दिन्छ!!

मनले नै मनलाई
असीम खुशी दिदो रहेछ,
मनबाट मन भाग्दा
आशु किन झार्दो रहेछ!!

मन खुसी, मन आनन्द
मनले नै मन खोज्छ,
मन पिडा, मन दु:ख
न पाउदा मन रोइ दिन्छ ?

मन सन्सार, मन असार
मन भित्र जगत रहेछ,
मनलाई मनले नै
माया किन खोज्दो रहेछ!!

मन भित्र मन हुँदा
सन्सार मिठो लाग्दो रहेछ,
न पाउदा त्यो मन किन
यो मन उदास हुदो रहेछ!!